समावेशी विकास और भारत

विश्व आर्थिक मंच ( डब्ल्यूईएफ) द्वारा जारी की गई समावेशी विकास सूचकांक 2018 में, भारत 74 उभरते देशों में से 62वें स्थान पर है। समावेशी विकास में भारत अपने सभी पड़ोसी देशों से काफी पीछे है। सूचकांक में चीन का 26वां, नेपाल का 22वां, बांग्लादेश का 34वां, श्रीलंका का 40वां और पाकिस्तान का 47वां स्थान है। नाॅर्वे दुनिया की सबसे समावेशी आधुनिक विकसित अर्थव्यवस्था बना हुआ है। अर्थव्यवस्थाओं की प्रगति का आकलन तीन निजी स्तंभों- वृद्धि एवं विकास, समावेशन और अंतर पीढ़ी इक्विटी के आधार पर किया गया है।
विश्व आर्थिक मंच द्वारा 79 विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में दिए गए समावेशी विकास सूचकांक 2017 में भारत 60वें स्थान पर था।

समावेशी होने का अर्थ क्या है :-

सामाजिक परिस्थिति को ध्यान में रखते हुए समावेशी का अर्थ सभी लोगों को साथ लेकर चलना है। मेरे लिए समावेशी होने का मतलब समाज में जाति, वर्ग, धर्म, आय एवं लैंगिक आधार पर किसी भी प्रकार का विभेद या असमानता का निषेध करना है।


इसमें लोगों को समान अवसर, समान अधिकार, शिक्षा, कौशल और उनके हक के लिए सशक्त करना शामिल है। महिलाओं के साथ हो रहे भेदभाव या समाज के किसी भी वर्ग के साथ हो रहे शोषण के विरूद्ध आवाज़ उठाना है।
समावेशी होना एक ऐसा विकास करना है जिसमें समाज के सभी वर्गों को बुनियादी सुविधाएँ उपलब्ध कराना अर्थात् आवास, भोजन, पेयजल, शिक्षा, स्वास्थ्य के साथ-साथ एक गरिमापूर्ण जीवन जीने के लिए आजीविका के साधनों को उत्पन्न करना।


समाज के सभी वर्गों की सहभागिता के बिना समावेशी समाज का विकास संभव नहीं है। शिक्षा समावेशन की प्रक्रिया का सबसे महत्वपूर्ण औजार है। शिक्षा ही वह प्रक्रिया है जिसके माध्यम से कोई व्यक्ति लोकतांत्रिक प्रक्रिया में अपनी भूमिका एवं अधिकार को समझता है और समावेशी समाज में बाधक तत्वों से निबटने की शक्ति प्राप्त करता है।


समावेशी समाज के विकास के लिए सरकार द्वारा भी कई योजनाओं की शुरुआत की गई है। इसमें शामिल है- दीनदयाल अंत्योदय योजना, मिड-डे-मील, मनरेगा, सर्व शिक्षा अभियान इत्यादि।
महिलाओं के लिए वित्तीय समावेशन को ध्यान में रखते हुए भी सरकार द्वारा स्टार्ट-अप इंडिया, सपोर्ट टू ट्रेनिंग एंड एप्लाॅयमेंट फाॅर वीमेन जैसी योजनाओं की शुरूआत की गई है।


वास्तव में भारत को समावेशी विकास के लिए और भी काम करने की आवश्यकता है। ताकि विकास का लाभ एक छोटे वर्ग तक सीमित न रहकर समस्त जनसंख्या को व्यापक तौर पर उपलब्ध हो। दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि देश एवं राज्य के विकास को बढ़ावा देने की ऐसी नीतियाँ होनी चाहिए, जो यह सुनिश्चित करे कि अधिक से अधिक लोग विकास की प्रक्रिया में भाग ले सकें।

:~ सौम्या

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