आगामी बजट पर "द हिन्दू बिजनेस लाइन" के सीनियर डिप्टी एडिटर श्री शिशिर सिन्हा से साक्षात्कार...
शिशिर सिन्हा सर ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में स्नातक और अर्थशास्त्र में मास्टर्स किया है। आपने 1995 में पत्रकारिता की शुरुआत की और देश के कई नामी अखबारों और चैनलों- अमर उजाला, आजतक, CNBC आवाज, एबीपी न्यूज़ में काम किया है और वर्तमान समय में सर "द हिंदू बिजनेस लाइन" में सीनियर डिप्टी एडिटर के रूप में कार्यरत हैं। सर बजट से संबंधित जानकारियों पर लगातार समाचार पत्रों, टेलीविजन और सोशल मीडिया पर अपनी राय देते रहते हैं।
आपका बहुत-बहुत स्वागत है। आप अपने बिजी शेड्यूल में से समय निकालकर हमारे साथ जुड़े इसके लिए आपका धन्यवाद।
आप सभी का आभार जो अपनी बात रखने के लिए मुझे मौका दिया।
सवाल: सर, आप एक बिजनेस पत्रकार के रूप में वर्ष 2000 से अब तक 20 से भी ज्यादा बजट कवर कर चुके हैं और देश की अर्थव्यवस्था की अच्छी समझ रखते हैं तो आपसे मेरा पहला सवाल यह है कि आगामी बजट को आप किस तरह से देखते हैं? देश के आम नागरिक को इस बजट से क्या उम्मीद रखनी चाहिए?
जवाब: यह तीसरा वर्ष है जब हम महामारी के बीच में बजट की बात कर रहे हैं (वर्ष 2020-21, 2021-22 और 2022-23) तो जाहिर सी बात है कि बहुत ज्यादा चुनौतियां होंगी। सबसे बड़ी चुनौती तो यह है कि आपकी आमदनी के बढ़ने के साथ-साथ खर्चे भी बढ़ रहे हैं तो उन पर कैसे लगाम लगाया जाए और जिस रफ्तार से खर्चा बढ़ रहा है और उस रफ्तार से आमदनी नहीं बढ़ रही है तो इसका मतलब यह हुआ कि घाटा भी ज्यादा रहेगा। घाटे को भी नियंत्रण में रखना है क्योंकि लंबे समय तक घाटे को ऊँचे स्तर पर बनाए रखना कहीं से भी तर्कपूर्ण नहीं है। पहली चुनौती आमदनी के बढ़ने की रफ्तार को और तेज करने की है ताकि खर्चों में हो रही बढ़ोतरी से निपटने में मदद मिल सकता है। दूसरा हमारा जो घाटा है जिसको अर्थशास्त्र की भाषा में राजकोषीय घाटा या फिस्कल डेफिसिट कहते हैं और आम बोलचाल की भाषा में सरकारी खजाने का घाटा कहते हैं उसको कैसे नियंत्रण में किया जाए। 2020-21 में घाटा काफी ज्यादा था। 2021-22 में उस घाटे को 6% तक लाने की बात कही गई और अब यह चर्चा है कि क्या हम इसे और कम करें। एक कानून है जिसे फिस्कल रिस्पांसिबिलिटी बजट मैनेजमेंट एक्ट (एफआरबीएम) कहते हैं। उसके तहत जो फिस्कल डेफिसिट है उसको 3% तक लाने की बात है। हालांकि इसमें विशेष परिस्थितियों में छूट दी जा सकती है, जिसे पॉज कहते हैं। यह विशेष परिस्थिति है लेकिन घाटा बहुत ज्यादा बढ़ता है तो इसका मतलब यह होगा कि हम बाजार से ज्यादा उधारी लेंगे, तो आने वाले सालों में उसका ब्याज और उस कर्ज को चुकाने में संसाधनों का एक बड़ा हिस्सा चला जाएगा। नतीजा यह होगा कि आपके ऊपर ब्याज और कर्ज चुकाने का बोझ बढ़ता जाएगा तो आने वाले समय में विकास के लिए संसाधन और भी कम हो जाएंगे। अगली बड़ी चुनौती है हम घाटे को कैसे कम या स्थिर कर सके। चौथा मुद्दा जो कई जनकल्याणकारी योजनाएं जैसे पीएम गरीब किसान, खाद्यान्न या मनरेगा की बात करें। उन पर आवंटन कैसे बढ़ाया जाए और दूसरी और जो बड़ी चीजें हैं शिक्षा और स्वास्थ्य। खास तौर स्वास्थ्य। बीते वर्ष इसमें आवंटन बढ़ाया गया लेकिन अभी उसे और ज्यादा बढ़ाने की जरूरत है। वैक्सीन के ऊपर भी खर्च बढ़ाने की जरूरत है। पांचवा जो कि सबसे ज्यादा अहम है क्योंकि इस समय पाँच राज्यों के विधानसभा चुनाव हो रहे हैं। इसको आप यह भी देख सकते हैं कि आम चुनाव से ठीक पहले यह आखिरी एक ऐसा बजट होगा जिसमें सरकार बड़े एलान कर सकती हैं। क्योंकि अगले वर्ष उसका दबाव अलग हो जाएगा तो उसको देखते हुए लोकलुभावन बनाम अर्थनीति की स्थिति होगी। यह देखना वाली बात है कि उनके बीच संतुलन बनाने की कोशिश होगी या केवल लोकलुभावन बातें होंगी या फिर अर्थव्यवस्था की जो वास्तविक जरूरत है उस पर ध्यान होगा। यह पाँच बातें ऐसी है जिसको लेकर इस बजट पर हमारी नजर रहेगी।
सवाल: सर, आपने अभी कहा कि ये बजट लोकलुभावन ज्यादा होगा और इसमें बड़े आर्थिक सुधार कम होंगे। तो सर, इसके बारे में हम और जानना चाहेंगे कि यह बजट लोकलुभावन ही होगा या इसमें आर्थिक सुधार के लिए भी कुछ कदम उठाये जायेंगे?
जवाब: अभी देश में पाँच राज्यों के विधानसभा चुनाव है जिसमें उत्तर प्रदेश भी शामिल है जो जनसंख्या के हिसाब से देश का सबसे बड़ा राज्य है और दूसरा जो अहम मुद्दा 2024 में आम चुनाव होने वाले हैं तो उसके ठीक पहले यह एक ऐसा मौका है जिसमें आप बड़ी योजनाएं या कुछ ऐसी बड़ी लोकलुभावन बातें कर सकते हैं। कई बार ऐसा होता है कि लोकलुभावन की परिभाषा को लेकर भी विवाद छिड़ जाता है। अर्थशास्त्री लोकलुभावन को अर्थशास्त्र के खिलाफ बताते हैं। उनको लगता है कि लोगों के लिए ज्यादा कल्याण की बातें करना अर्थशास्त्र की नीतियों के हिसाब से सही नहीं है जबकि एक राजनीतिक दल जो है वह सोचता है कि लोगों को ज्यादा लुभाने के लिए हम क्या कर सकते हैं। यह संघर्ष या टकराव की स्थिति हमेशा बनी रहती है। लोकलुभावन कहने का मतलब यह है कि आप सब्सिडी पर या ऐसी योजनाओं पर बहुत ज्यादा खर्च कर रहे हैं जिससे आपके पास असेट क्रिएशन या परिसंपत्ति का निर्माण कम हो रहा है। आपका खर्च राजस्व में ज्यादा जा रहा है तो ऐसी योजनाएं जिसकी वजह से आपके ऊपर खर्च का दबाव लगातार बढ़ता जाए और उससे किसी भी प्रकार की परिसंपत्ति का निर्माण ना हो या फिर पूंजी का निर्माण ना हो वह लोकलुभावन की श्रेणी में आता है। अमूमन चुनाव के पहले यह व्यवस्था हमने देखी है कि इस तरह की नीतियों की घोषणा की जाती है। कहा जाता है कि अंतरिम बजट में सरकार ऐसा कुछ भी नहीं करती हैं जो बड़ी नीतियों में बदलाव कर सके। लेकिन आप अगर 2019 का अंतरिम बजट देखेंगे जो उस समय के वित्त मंत्री (कार्यवाहक) पीयूष गोयल ने पेश किया था। उसमें उन्होंने कई ऐसी योजनाओं का ऐलान किया था जो अंतरिम बजट की भावना के खिलाफ थी। तो मुझे लगता है कि इस समय आम चुनाव और विधानसभा चुनाव जो तुरंत होने वाला है, को ध्यान में रखते हुए कई ऐसी योजनाओं का ऐलान हो सकता है। कुछ ऐसी योजनाओं पर खर्च की व्यवस्था ज्यादा की जा सकती है जो लोगों के कल्याण के लिए ज्यादा हो, परिसंपत्ति का उसमें निर्माण ना हो और जिनको आप एक तरीके से लोकलुभावन श्रेणी में रख सकते हैं।
सवाल: सर, ये देखा गया था कि पिछले बजट से किसानों को बहुत नाराजगी रही थी। कुछ ही समय पहले सरकार ने तीन कृषि कानून को वापस लिया है। तो इस बजट में किसानों के लिए सरकार क्या खास कर सकती है या सरकार को क्या करना चाहिए?
जवाब: पिछले दो वर्षों (2020-21 और 2021-22) में कृषि इकलौता क्षेत्र हैं जिसने अर्थव्यवस्था के बाकी क्षेत्रों के मुकाबले बेहतर प्रदर्शन किया है। अर्थव्यवस्था में तीन क्षेत्र हैं- उद्योग, सेवा और कृषि। सेवा क्षेत्र की हिस्सेदारी सबसे ज्यादा है (54-55%) उसके बाद उद्योग और फिर कृषि जिसकी हिस्सेदारी करीबन 20% तक पहुँच गई है। हम विकास के आंकड़े को देखें तो पिछले दो वित्त वर्षों में कृषि क्षेत्र ने लगातार अच्छे नतीजे दिए हैं। अब यह समय है कि हम ऐसे इंतजाम करें जो उनके लिए बेहतर हो और वे ज्यादा विकास कर सकें। हम यह उम्मीद कर रहे हैं कि इस बजट में उनको खाद, कृषि उपकरण इत्यादि पर ज्यादा सब्सिडी मिले और किसानों के लिए लागत में कमी करने और उनकी फसल के लिए वाजिब कीमत मिल सके। पीएम किसान योजना जिसके तहत ₹2000 की तीन किश्तों में नकद सहायता दी जाती हैं, उसे भी बढ़ाने की चर्चा चल रही है। यह उपयुक्त समय है कि हम उस रकम को बढ़ा दे। कई मामलों में हमने देखा है कि यह अपर्याप्त है तो हम एक उम्मीद कर रहे हैं कि शायद इसमें बढ़ोतरी की जाए। सबसे महत्वपूर्ण बात है कि कृषि में बहुत ज्यादा वैल्यू एडिशन देखने को मिल रहा है। वैल्यू एडिशन का मतलब है कि आपका उत्पाद जो है वह बेहतर स्वरूप में उपभोक्ताओं तक पहुंचे। उसमें फूड प्रोसेसिंग इंडस्ट्री की हिस्सेदारी बढ़ जाती है जिससे किसान का नुकसान होता है। सरकार पर उसको रोकने की जिम्मेदारी बढ़ जाती है और इसके अलावा वेयरहाउसिंग का इंतजाम करना भी महत्वपूर्ण हो जाता है तो मुझे लगता है कि इस तीनों चीज के ऊपर चाहे फूड प्रोसेसिंग हो, वेयरहाउसिंग की बात करें या नुकसान की बात करें इसके लिए कुछ इंतजाम करें या अतिरिक्त संसाधन दिए जा सकते हैं। यह किया जाए तो एक उम्मीद की जा सकती है।
सवाल: पिछले साल, सरकार ने वार्षिक बजट में शिक्षा के लिए अपने आवंटन में 6 प्रतिशत की कटौती की थी। इस बार शिक्षा क्षेत्र को बजट से बहुत उम्मीदें हैं तो सरकार इस बार बजट में शिक्षा क्षेत्र के लिए क्या कर सकती है ?
जवाब: दुर्भाग्य है कि शिक्षा और स्वास्थ्य कहने को हमारे लिए प्राथमिकता होती है लेकिन जब बजट संसाधनों की बात करते हैं तो उनको उस तरीके की सहायता नहीं दी जाती है। जब हम लोग नई शिक्षा नीति की बात कर रहे हैं, हम यह देख रहे हैं कि स्कूल ऑनलाइन और हाइब्रिड सिस्टम में चले गए हैं जहां पर टेक्नोलॉजी डेवलपमेंट पर काफी कुछ खर्च करना है तो जाहिर सी बात है शिक्षा के ऊपर आपको खर्च बढ़ाना होगा। यह एक विडंबना है कि हर वर्ष के बजट के ठीक पहले हम लोग कहते हैं कि शिक्षा और स्वास्थ्य पर जीडीपी का 3-4% हम खर्च करेंगे पर जब वास्तविक रूप में देखते हैं तो उसमें कुछ बहुत ज्यादा बढ़ोतरी हमें दिखाई नहीं देती बल्कि कई मामलों में हमें कमी दिखाई देती है। उम्मीद जरूर है लेकिन मुझे बहुत ज्यादा नहीं लगता है की शिक्षा के ऊपर खर्च में सरकार बढ़ोतरी करेगी।
सवाल: सर, इस बजट से ये भी उम्मीद की जा रही है कि आयकरदाता जो कर देते हैं, उसमें उन्हें कुछ छूट दी जायेगी। तो क्या इस बजट में टैक्स छूट की सीमा में बढ़ोतरी की उम्मीद की जा सकती है ?
जवाब: आयकर दाताओं के लिए तीन व्यवस्थाएँ जो अहम है- एक है ढाई लाख रूपये तक की सालाना आमदनी जिस पर आपको कर नहीं देना होता और कई तरह की छूट के जरिए यह रकम पाँच लाख तक पहुंच जाती है। यानी कि पाँच लाख तक की सालाना आय वालों को एक भी पैसा नहीं देना होता है। दूसरा आयकर की दर 05%, 20% और 30% है। इनके बीच में अंतर है वह बहुत ज्यादा है। यह अंतर कम करने की जरूरत है क्योंकि आपकी आमदनी जैसे ही पाँच लाख के ऊपर एक रूपया भी हो गई तो आप तुरंत 20% की आयकर श्रेणी में आ जाते हैं। यह बिल्कुल सही समय है कि 05% और 20% के अंतर को कम किया जाए ताकि ज्यादा से ज्यादा करदाताओं के लिए कर चुकाने में राहत की उम्मीद की जा सके। बीते वर्ष में यह बात चल रही थी लेकिन वह काफी चुनौतियों वाला वर्ष था, उसमें बहुत कुछ चेंज नहीं किया जा सका था। आम चुनाव के ठीक पहले यह मौका है जब आप बड़े फैसले कर सकते हैं तो यह समय है कि इस अंतर को कम करने के लिए कर की एक नई दर की बात की जाए। तीसरा जो हम उम्मीद कर रहे है कि महंगाई दर में जो बढ़ोतरी हुई है उसको देखते हुए, खासतौर से वेतनभोगियों के लिए जो स्टैंडर्ड डिडक्शन है उस रकम में दस या बीस हजार रूपए की बढ़ोतरी की जाए जिससे कि उनके हाथ में अतिरिक्त पैसे आए जिसे वह बाजार में खर्च कर सके। इसके दो फायदे होंगे एक तो महंगाई से निपटने में थोड़ी मदद हो जाएगी और दूसरा बाजार में जब ज्यादा खर्च करेंगे तो बाजार में मांग बढ़ेगी। जिसे अर्थशास्त्र की भाषा में वर्चुअल साइकिल कहते हैं। एक और होता है विसियस साइकिल। यह एक दुष्चक्र है यानी कि एक बुरा, दूसरा बुरा, तीसरा, चौथा बुरा और अंत में हम पूरे बुरे चक्र में फंस जाते हैं लेकिन जो वर्चुअल साइकिल होता है उसमें दूसरा अच्छा, तीसरा अच्छा और हम एक अच्छे चक्र में आ जाते हैं।
हम यह उम्मीद कर रहे हैं कि एक कर की जो दर है 05% और 20% उनके बीच के अंतर को कम किया जाए और दूसरा जो स्टैंडर्ड डिडक्शन है उसको बढ़ा दिया जाए। हालांकि एक बात और कहीं जा रही है कि जो ढाई लाख की जो सीमा है उसको बढ़ा करके पाँच लाख तक कर दिया जाए जिससे कि ज्यादा से ज्यादा लोगों को फायदा हो। मुझे लगता है कि शायद इस पर बहुत ज्यादा फैसला ना हो लेकिन बाकी जो दो बातें मैंने कही उससे हमें कुछ उम्मीद है।
सवाल: सर, अभी बेरोजगारी एक बहुत बड़ा मुद्दा है। खास तौर पर कोविड के बाद युवाओं में बेरोजगारी और अधिक बढ़ गई है। इस बजट में सरकार रोजगार को लेकर क्या कर सकती है? हम क्या उम्मीद कर सकते हैं ?
जवाब: रोजगार के मौके ज्यादा से ज्यादा तैयार हो इसके लिए आपके पास दो विकल्प होते हैं एक जो छोटे, मझोले और बड़े उद्योग हैं उनको कैसे प्रोत्साहित करें कि वो नया निवेश करें, बाजार में नई कंपनियां शुरू करें। दूसरा यह होता है कि हम लोगों को उद्यमिता के लिए प्रोत्साहित करें।
पहला विकल्प, जहां तक कंपनियों को प्रोत्साहित करने की बात है और खास तौर पर जो माइक्रो स्मॉल एंटरप्राइजेज हैं। जहां सूक्ष्म लघु और मध्यम उद्योग जिसमें बड़े पैमाने पर रोजगार के मौके बनते हैं। एक अनुमान है कि लगभग 11-12 करोड़ रोजगार के मौके एमएसएमई में बनते हैं तो एक अच्छा यह मौका होगा कि जब हम एमएसएमई के लिए नई व्यवस्था करें। चाहे हम उनको कर के लिए प्रोत्साहित करें। कर में छूट दें या फिर नया काम शुरू करने के लिए उनके लिए पूंजी का इंतजाम किया जाए। उनके लिए निर्यात के ज्यादा से ज्यादा मौके बने इसके लिए बाजार का इंतजाम किया जाए। इससे रोजगार के ज्यादा मौके तैयार करने में मदद मिलेगी।
दूसरे जो बड़ी कंपनियां है उनके लिए कॉरपोरेट टैक्स में पहले ही कमी की जा चुकी है। अब बहुत ज्यादा बदलाव की गुंजाइश नहीं बनती है लेकिन कंपनियों के ईपीएफ में सरकार कंट्रीब्यूट करके उनको ज्यादा नौकरी देने के लिए प्रोत्साहित कर सकती हैं। कुछ इस तरह की जो योजनाएं है उनका विस्तार किया जाना चाहिए। एमएसएमई के ऊपर ज्यादा फोकस होना चाहिए क्योंकि इसमें रोजगार के ज्यादा मौके बनते हैं। बड़ी कंपनियों के लिए आपके पास सीमित विकल्प है। इसके साथ-साथ जो स्टार्टअप्स है उनके लिए हम नए प्रोत्साहन का ऐलान करें जिससे कि रोजगार लेने की बजाय रोजगार देने की प्रवृत्ति बढ़ सके। इससे भी रोजगार को लेकर जो परेशानी बनती है उससे निपटने में मदद मिलेगी।
सवाल: सर, आपसे मेरा आखिरी सवाल यह है कि देश की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण जो खुद एक महिला हैं तो इस बजट में वे महिलाओं को सशक्त करने, उन्हें मजबूत करने और उनकी सुरक्षा के लिए क्या कर सकती हैं, इस बजट में महिलाओं के लिए क्या कुछ नया हो सकता है?
जवाब: मुझे लगता है कि वह निर्भया फंड को ज्यादा बेहतर तरीके से इस्तेमाल करने का रास्ता बना दे और वो उसके सही इंतजाम तैयार कर दें तो यह महिलाओं की सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा कदम माना जाएगा। दूसरा जब एक महिला बजट पेश करती हैं तो वह घर के बजट को कितना ध्यान में रखती है। वह खुद एक महिला हैं वह घर की परेशानियों को अच्छे तरीके से समझती हैं और मुझे लगता है कि एक महिला से बड़ी और एक माँ से बड़ा कोई अर्थशास्त्री नहीं होता। वह एक अर्थशास्त्री भी हैं, एक महिला भी हैं और एक परिवार भी चलाती हैं तो महिलाओं की सुरक्षा के साथ-साथ वे घर के बजट के बारे में भी सोचें। जैसे रसोई गैस के दाम बहुत बढ़ गए हैं उसे कम कर सके। सुरक्षा तो है ही उसके अलावा घर चलाने में भी महिलाओं की अतिरिक्त मदद के इंतजाम कर सकें। वे ऐसा कोई कदम जरूर सोचेगी जिससे महिलाओं को घर से बाहर निकलने में सुरक्षा का एहसास हो और घर में भी आर्थिक सुरक्षा का एहसास हो।
जी धन्यवाद। आप हमारे छोटे से निवेदन पर हमसे जुड़े और हमारे सवालों का जवाब दिया। बहुत-बहुत शुक्रिया आपका, बहुत-बहुत आभार।
मैं यहां इस इंटरव्यू का वीडियो भी डाल रही हूं, आप चाहे तो वीडियो भी देख सकते हैं।
नोट :- बतौर प्रशिक्षु पत्रकार ये मेरा पहला इंटरव्यू है। आपकी प्रतिक्रियाओं और सुझावों का स्वागत है। आप हमें पढ़ कर, देखकर ज़रूर बताएं कि आपको यह इंटरव्यू कैसा लगा।
शुक्रिया.
#budget #budget2022-23 #nirmalasitaraman #budget2022 #shishirsinha #thehindubussinessline #iimc #intetview
Write a comment ...