इनकी भी सुन लो सरकार...!

कोरोना महामारी के कारण हुए लाॅकडाउन ने बहुत से लोगों के सामने रोजगार का संकट पैदा कर दिया है।  महामारी के कारण भारत में एक करोड़ से अधिक लोगों की नौकरी चली गई और कईयों के धंधे चौपट हो गए। स्वरोजगार में लगे लोग, छोटे-मोटे काम धंधे करके परिवार चलाने वाले लोग सभी घर में बैठे हैं और उनकी आमदनी का कोई स्रोत नहीं है। सीएमआईई (सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी) के एक नवीनतम डेटा के अनुसार देश में औसत बेरोजगारी दर आठ फीसदी तक पहुंच गई है। लॉकडाउन ने घरों में काम करने वाले लोगों (हाउस हेल्प) के जीवन को भी बुरी तरह प्रभावित किया है।

दक्षिणी दिल्ली के एक गांव पिलंजी में ग्राउंड रिपोर्टिंग के दौरान मिली एक 55 वर्षीय महिला सुखनी बाई ने बातचीत के दौरान बताया कि लाॅकडाउन से पहले वह  आठ से दस घरों में झाड़ू-पोछा और बर्तन धोने का काम कर लेती थीं। लेकिन महामारी के बाद उन्हें मुश्किल से एक से दो घरों में ही काम मिल पाता है। वे बताती हैं कि जिन घरों में वे अभी काम करती हैं वे लोग भी उन्हें पैसे देते वक्त टाल-मटोल और मोलभाव करते हैं। बढ़ती महंगाई के इस दौर में दिल्ली जैसे शहर में उनका गुजारा भी बहुत मुश्किल से हो पाता है।

उनके पति से बातचीत

बीमार पति और पूरे परिवार के देखभाल का भार उन्हीं के कंधों पर है। उनके पति को पांच महीने पहले किसी सड़क दुर्घटना में पैरों में चोट लग गयी थी। उन्होंने बताया कि इलाज के लिए वे उन्हें मोतीबाग के एक सरकारी अस्पताल ले गईं लेकिन उन्हें वहां ठीक से इलाज नहीं मिला, जिसके कारण उनके पैरों में इंफेक्शन हो गया। अब उन्हें डर है कि ये इंफेक्शन कोई गंभीर बीमारी का रूप न ले लें। उनकी ये समस्या केन्द्र सरकार की आयुष्मान भारत और दिल्ली सरकार की मुफ्त इलाज योजनाओं के खोखले दावों की पोल खोलती है।

घाव दिखाते सुखनी के पति

स्वास्थ्य सेवा सुलभ होने के मामले में भारत दुनिया के 195 देशों में 154वीं पायदान पर हैं। यहां तक कि यह बांग्लादेश, नेपाल, घाना और लाइबेरिया से भी बदतर हालत में है। स्वास्थ्य सेवा पर भारत सरकार का खर्च (जीडीपी का 1.15 फीसदी) दुनिया के सबसे कम खर्चों में से एक है। भारत प्रति वर्ष सार्वजनिक स्वास्थ्य पर प्रति व्यक्ति 1,112 रुपये खर्च करता है, जो बहुत कम है। यानी 93 रुपये प्रति माह या 3 रुपये प्रति दिन। देश में स्वास्थ्य सेवा के बुनियादी ढांचे और इस क्षेत्र में काम करने वाले लोगों की बेतहाशा कमी है।

केन्द्रीय मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण ने संसद में आर्थिक समीक्षा 2020-21 पेश करते हुए कहा था कि राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 में की गई संकल्पना के अनुरूप स्वास्थ्य सेवाओं पर सार्वजनिक व्यय को जीडीपी के एक प्रतिशत से बढ़ाकर 2.5-3 प्रतिशत करने की सिफारिश करती है। समीक्षा के अनुसार, एक राष्ट्र का स्वास्थ्य व्यापक स्तर पर अपने नागरिकों की समान, सस्ती और विश्वसनीय स्वास्थ्य व्यवस्था तक पहुंच पर निर्भर करता है। लेकिन सरकार की ये सारी सिफारिशें और वादे जमीनी स्तर पर कितना पहुंच पाए हैं, ये देखने वाली बात है।

ऐसे समय में जब भारत पांच ट्रिलियन डाॅलर इकाॅनामी की ओर बढ़ने की बात कर रहा है, तब भारत में सुखनी बाई जैसे हजारों परिवार हैं जो बहुत मुश्किल से अपना जीवन गुजर-बसर कर रहे हैं।

:~ सौम्या

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