"मैं अपनी नियति का सामना करने के लिए किसी नशे का सहारा लेना नहीं चाहता" - भगत सिंह
शहीद-ए-आज़म भगतसिंह के सुप्रसिद्ध लेख "मैं नास्तिक क्यों हूँ" की समीक्षा
शहीद-ए-आज़म भगतसिंह के सुप्रसिद्ध लेख "मैं नास्तिक क्यों हूँ" की समीक्षा
कोरोना महामारी के कारण हुए लाॅकडाउन ने बहुत से लोगों के सामने रोजगार का संकट पैदा कर दिया है। महामारी के कारण भारत में एक करोड़ से अधिक लोगों की नौकरी चली गई और कईयों के धंधे चौपट हो गए। स्वरोजगार में लगे लोग, छोटे-मोटे काम धंधे करके परिवार चलाने वाले लोग सभी घर में बैठे हैं और उनकी आमदनी का कोई स्रोत नहीं है। सीएमआईई (सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी) के एक नवीनतम डेटा के अनुसार देश में औसत बेरोजगारी दर आठ फीसदी तक पहुंच गई है। लॉकडाउन ने घरों में काम करने वाले लोगों (हाउस हेल्प) के जीवन को भी बुरी तरह प्रभावित किया है।
आर्थिक सर्वेक्षण केन्द्रीय बजट प्रस्तुत किये जाने से एक दिन पहले पेश किया जाता है। केन्द्रीय मंत्री निर्मला सीतारमण ने सोमवार को लोकसभा में आर्थिक सर्वेक्षण 2021-22 पेश किया।
आगामी बजट पर "द हिन्दू बिजनेस लाइन" के सीनियर डिप्टी एडिटर श्री शिशिर सिन्हा से साक्षात्कार...
To do anything you need to believe in yourself. In the begining, people will criticise you, they will judge you. They will say, it's too risky, they will say it cant't be done, they will say you can't do it. But they can't see your vision. They don't know your heart. They will never understand how much it means to you.
विश्व आर्थिक मंच ( डब्ल्यूईएफ) द्वारा जारी की गई समावेशी विकास सूचकांक 2018 में, भारत 74 उभरते देशों में से 62वें स्थान पर है। समावेशी विकास में भारत अपने सभी पड़ोसी देशों से काफी पीछे है। सूचकांक में चीन का 26वां, नेपाल का 22वां, बांग्लादेश का 34वां, श्रीलंका का 40वां और पाकिस्तान का 47वां स्थान है। नाॅर्वे दुनिया की सबसे समावेशी आधुनिक विकसित अर्थव्यवस्था बना हुआ है। अर्थव्यवस्थाओं की प्रगति का आकलन तीन निजी स्तंभों- वृद्धि एवं विकास, समावेशन और अंतर पीढ़ी इक्विटी के आधार पर किया गया है।विश्व आर्थिक मंच द्वारा 79 विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में दिए गए समावेशी विकास सूचकांक 2017 में भारत 60वें स्थान पर था।
अपनी गलती स्वीकार करना सीखें। अपनी गलती स्वीकार करने वाले लोग ज्यादा सफल होते हैं। हमारी समस्या यह है कि हम गलतियां तो करते है, लेकिन दुख की बात यह है कि हममें से अधिकतर लोग अपनी गलतियों से सबक नहीं लेते। इसलिए हमारी जिंदगी वैसी ही चलती रहती है जैसे चल रही थी।